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नमस्कार आज के सेशन में आपका स्वागत है।
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डरावना विषय है, लोग भाग जाते हैं।
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दरअसल, वो पृथ्वी की आयु है।
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आज हम शुरू करेंगे।
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भारतीय दर्शन से
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भारतीय दर्शन से क्यों शुरू करेंगे?
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तो एक रास्ता है कि हम भारत से शुरू करें।
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यूरोप अमेरिका का दर्शन
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सिर्फ भारत से ही क्यों शुरू करें।
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और ये बात
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सत्यापित है।
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पूरे पश्चिम का पहला दार्शनिक थेल्स
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लेकिन हमारे यहां उस समय
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कम से कम हजार साल पहले हम वेद लिख चुके थे।
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उपनिषदों को लिखने के प्रोसेस में थे
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राष्ट्र कवि का दर्जा उन्हें दिया जाता है।
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उनकी बहुत किताबें हैं।
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और उसमें वह जो अतीत खंड है।
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महान रहा, उसमें बड़ी प्रसिद्ध पंक्ति है।
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संसार को पहले हम ही ने ज्ञान शिक्षा दान की
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संसार को पहले हम ही ने ज्ञान शिक्षा दान की
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आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की
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वो बात तो आनी चाहिए।
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तीसरा कारण बहुत पर्सनल है।
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इससे पूरा वेस्टर्न फिलॉसफी समझ में आ गई
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भारतीय पर नहीं मिलते
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आज हम दो बातों पर गौर करेंगे।
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आज एक इंट्रोडक्शन रखेंगे।
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भारतीय दर्शन का
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तो उसमें दो बातों पर गौर कर सकते हैं।
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अनुक्रम क्या है या हिस्टोरिकल
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पर्सपेक्टिव क्या है।
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उसका हिस्टोरिकल पर्सपेक्टिव
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वेद से शुरू होकर
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सभी दार्शनिकों में नजर आ जाते हैं
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वस्तु है या कुछ है, आत्मा है।
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यह क्रम सिद्धांत है, यह भी दर्शन का हिस्सा है
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आप सब दार्शनिक
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हम चाहकर भी अदार्शनिक नहीं हो सकते।
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वही आज समझने का प्रयास करेंगे
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तो यदि शुरुआत करें कि।
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कहां कहां से फिलॉसफी की शुरुआत हमारे देश में हुई।
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भारतीय दर्शन में कह सकते हैं।
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बहुत-बहुत विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है।
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और एक शब्द आपने शायद सुना होगा।
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उपनिषद।
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देवनागरी में नहीं लिख रहा हूं क्योंकि
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बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हिंदी समझते
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वेद आपको पता है कि बहुत पुरानी रचना
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वेदों को किसने लिखा पता नहीं
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यह किसी एक व्यक्ति की रचना हो नहीं सकती
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इन मंत्रों की रचनाएं की होंगी।
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ये मानवीय नहीं हो सकता।
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वेद अकृत्रक है।
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नित्य है प्राकृतिक है।
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हाँ ये हो सकता है कि वेदों के ज्ञान को कुछ लोगों ने कंपाइल कर दिया हो, लेकिन वेदों की रचना
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इकट्ठा किया गया।
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तो जो वेदव्यास नाम के एक ऋषि हुए
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वेदव्यास बहुत ही
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विराट योगदान वाले व्यक्ति माने जाते हैं।
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ये वो व्यक्ति
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जिन्होंने अट्ठारह पुराणों की रचना की।
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जो वेदान्त दर्शन का सबसे मूल एक ग्रंथ है।
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वेद चार हैं।
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एक नाम अथर्ववेद है।
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वेदों में दर्शन बहुत ज्यादा नहीं
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हवन करते हैं। पूजा पाठ करते हैं।
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अरे भाई सब रास्ते एक ही रास्ते हैं।
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एक ही है एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति
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हर वेद के चार हिस्से माने जाते हैं।
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जिसमें पहले हिस्से का नाम होता है, संहिता
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और संहिता का बेसिक मतलब
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ब्राह्मण का।
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इसी वजह से ब्राह्मण ही कहलाने लगे होंगे।
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आरण्यक, अरण्य होता है जंगल।
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वो आरण्यक में होते थे
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इसलिए उपनिषद कोई अलग चीज नहीं
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उपनिषद। वेदों का ही हिस्सा है।
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बहुत सारे उपनिषद माने जाते हैं।
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जैसे वृहदारण्यक बहुत महत्वपूर्ण है
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इसके अंतर्गत है। सामवेद के अंतर्गत छांदोग्य उपनिषद,
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वेदों का अंतिम हिस्सा
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उपनिषद जो है ना वह है फिलॉसफी।
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वेदांत में दिखती है, इसलिए आपको समझना होगा।
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वो क्या है उपनिषद है
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वो सारी धारणाएं जो आप आज मानते हैं, आ चुकी थी
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आत्मा होती है या नहीं। वेदों में कहीं कहीं हल्का-सा कन्फ्यूजन दिख सकता है,
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मुक्ति कह देते
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पूरी तरह से
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इससे ये सारी की सारी धारणाएं आत्मा हो।
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और आपने शब्द सुना होगा, ब्रह्म
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वेदों में बहुत सारे ईश्वर हैं।
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ये इंडियन फिलॉसफी का पहला फेज है,
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लेकिन इसके बाद क्या हुआ।
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तो बहुत सारे लोगों की रुचि
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इन चीजों से हटने लगी
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उसका कारण मानते हैं।
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आस्तिक दर्शन
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यह शब्द प्रचलित हैं।
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दर्शन की पुस्तकों में
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